ओबामा को गार्ड ऑफ ऑनर देकर पूजा ठाकुर ने रचा इतिहास

नई दिल्ली। भारतीय वायुसेना की विंग कमांडर पूजा ठाकुर ने राष्ट्रपति भवन में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के स्वागत समारोह के दौरान गार्ड ऑफ ऑनर की अगुवाई कर इतिहास रच दिया है। वह राष्ट्रपति भवन में किसी राजकीय मेहमान को दिए गए गार्ड ऑफ ऑनर का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी हैं। विंग कमांडर पूजा ठाकुर ने कहा कि वह दुनिया के सबसे ताकतवर इंसान और संभवत: सबसे शक्तिशाली सेना के कमांडर को गार्ड ऑफ ऑनर देकर गर्व महसूस कर रही हैं।  पूजा ने कहा, वैसे तो हम प्रशिक्षित हैं, लेकिन इसके लिए अलग से प्रशिक्षण लिया और अभ्यास भी किया। मैं आशा करती हूं कि महिलाएं और अधिक तादाद में सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित होंगी। ओबामा को राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में आयोजित स्वागत समारोह के दौरान 21 तोपों की परंपरागत सलामी भी दी गई। इस दौरान भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्रियों समेत कई गणमान्य हस्तियां मौजूद थीं। गार्ड ऑफ ऑनर के मुआयने के बाद ओबामा राजघाट गए, जहां उन्होंने पीपल का पौधा रोपा और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी।  ऎसा पहली बार हुआ है कि किसी विदेशी मेहमान की मौजूदगी में गार्ड ऑफ ऑनर का नेतृत्व किसी महिला अफसर ने किया है। इसे ग्लोबल लेवल पर भारत की ओर से दिया गया बडा संदेश माना जा रहा है। जानकार मानते हैं कि इससे भारत में महिलाओं की बेहतर होती स्थिति और उनका समाज में बढते प्रभाव को पेश करने की कोशिश की गई है। बता दें कि सोमवार को होने वाले रिपब्लिक डे परेड में भी महिला अफसर शामिल होंगी। इस परेड में ओबामा बतौर चीफ गेस्ट मौजूद होंगे। पीएम नरेंद्र मोदी की पहल पर परेड में महिला अफसरों को वरीयता दी गई है।
नई दिल्ली। भारतीय वायुसेना की विंग कमांडर पूजा ठाकुर
पूजा ठाकुर अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ
पूजा ठाकुर अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ

नई दिल्ली। भारतीय वायुसेना की विंग कमांडर पूजा ठाकुर ने राष्ट्रपति भवन में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के स्वागत समारोह के दौरान गार्ड ऑफ ऑनर की अगुवाई कर इतिहास रच दिया है। वह राष्ट्रपति भवन में किसी राजकीय मेहमान को दिए गए गार्ड ऑफ ऑनर का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी हैं। विंग कमांडर पूजा ठाकुर ने कहा कि वह दुनिया के सबसे ताकतवर इंसान और संभवत: सबसे शक्तिशाली सेना के कमांडर को गार्ड ऑफ ऑनर देकर गर्व महसूस कर रही हैं।
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Maharana Pratap (महाराणा प्रताप)

Maharana Pratap

——-महाराणा प्रताप सिंह जी सिसोदिया——–
शासन 1572–1597
राज तिलक 1 मार्च 1572
पूर्वाधिकारी उदय सिंह द्वितीय
उत्तराधिकारी महाराणा अमर सिंह
जीवन संगी (11 पत्नियाँ)
संतान अमर सिंह
भगवान दास
(17 पुत्र)
राज घराना सिसोदिया
पिता उदय सिंह द्वितीय
माता महाराणी जयवंता कँवर
धर्म हिन्दू धर्म
महाराणा प्रताप (9 मई 1540 – 19 जनवरी 1597) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कँवर के घर हुआ था। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को शक्ति सिंह ने बचाया। उनके प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गएँ। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंतीत हुई। २५,००० राजपूतों को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर भामा शा भी अमर हुआ।


जीवन

बिरला मंदिर, दिल्ली में महाराणा प्रताप का शैल चित्र

उदयपुर में महाराणा प्रताप की स्मारक
महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप की माता का नाम जैवन्ताबाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ। महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था। अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिये क्रमश: चार शान्ति दूतों को भेजा।

जलाल खान कोरची (सितम्बर १५७२)
मानसिंह (१५७३)
भगवान दास (सितम्बर–अक्टूबर १५७३)
टोडरमल (दिसम्बर १५७३)
हल्दीघाटी का युद्ध
मुख्य लेख : हल्दीघाटी का युद्ध.
यह युद्ध18 जून १५७६ ईस्वी में मेवाड तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लडने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे -हकीम खाँ सूरी।

इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया। इस युद्ध का आँखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनीं ने किया। इस युद्ध को आसफ खाँ ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी। इस युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की।

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